अनिल यादव


जिंदगी ने इतनी खुशी दी थी कि दुखों भी हंसी में उड़ा देता था। पर जिंदगी में कुछ ऐसे लोग मिले की अब लोगों को पहचानने लगा हूं। मै कभी जिंदगी में सोच भी नहीं सोच सकता था की मेहनत करने वाले भी यूं अपना जमीर बेच सकते हैं। जमीर बेचना तो छोटी सी बात है। लोगो ने तो पता नहीं अपना क्या क्या बेच दिया। मैने कुछ दिन पहले ऐसी आर्गेनाइतज़ेशन छोड़ी या यूं कहे हालात ने अपने आप हमे निकाल दिया। लेकिन भगवान ने शायद हमारे बारे में सही ही सोचा था। ये आर्गेनाइतज़ेशन नहीं कुत्ते बिल्लियों की जमात थी। यहा के लोग पॉलिटिक्स में इतने माहिर थे कि राज ठाकरे भी इनके बौना लगेगा.. इन लोगों में इंसानियत तो शायद थी ही नहीं । ये मालिक के लिए किसी भी हद तक गिर सकते थे । लेकिन कुदरत का खेल तो देखिए यहां के मालिक भी कपड़ों की तरह बदलते जा रहे थे। यहां एक स्ट्राइक हुई उस दौरान तो ना जाने क्या क्या हुआ। उसके वो आर्गेनाइज़ेशन बंद हो गई । इसके बाद यहां ऐसे लोग काम करने लगे है कुछ विदेशी भी.. जिन्होने इस मीडिया हाउस को बंद करवाने में अहम भूमिका निभाई थी.. और कई ऐसे जिन्हे हिन्दी के क का ज्ञान नहीं लेकिन आज बहुत उंचे पद पर विराज गए है। कुछ ने हमे तो अपना समझ कर हमे तो लगा दिया काम पर लेकिन भगवान करे कि ये आर्गेनाइज़ेशन ठीक हो जाए। क्योंकि आज भी यहां बहुत अच्छे लोग हैं।