अनिल यादव
प्रणव मुखर्जी इस बार जब संसद में बजट पेश कर रहे थे । जैसे-जैसे बजट पेश हो रहा था मेरी धड़कने बड़ती जा रही थी। मेरे परेशान होने का कारण मुझे ही नहीं समझ आ रहा था। क्योकिं मै ना तो बिज़नेसमैन हूं और ना ही मेरी नई-नई शादी हुई है जो मुझे नया घर लेना है कि मुझे होम लोन की चिंता हो । मुझे तो चिंता थी मक्खन की, हो भी क्यों ना क्योंकि भाई अगर ये मक्खन सस्ता ना हुआ तो कई लोगों के सपने टूट जाएंगे, सपने बॉस बनने का.... अपने आप को साबित करने का सपना ।क्योंकि आज के इस दौर में अगर आप बाकी लोगों के मुकाबले कुछ कम जानते हैं तो चलेगा बशर्ते आप घर से आते वक्त इतना मक्खन ले आएं की बॉसेस को मक्खन लगाने में कमी ना आ जाए । और अगर बेशर्मी की बाकी हदे भी पार कर सकते हैं तो बॉस की हर बात पे सर तो हिलाते ही रहिए साथ-साथ अपने आप को ऊचां दिखाने के चक्कर में दूसरे के आत्मसम्मान को इतनी ठेस पहुंचाते रहिए की वो घर जाकर आप को सोच कर एक बार थर्रा तो जरुर जाए। और आप अपने मक्खन लेकर लगे रहिए लगाने... आप का कुछ भला हो ना हो पर दूसरों की बेइज्जती करते-करते आप टीआरपी में जरुर आ जाएंगे.. क्योंकि काम के दम पर तो टीआरपी जुटा पाना शायद आपको अच्छा नहीं लग रहा। साथ ही साथ समय मिलते ही अरे भाई समय ना भी मिले तो क्या हुआ काम छोड़िए और नजर बचाते ही पहुंच जाइए बॉस के केबिन में क्योंकि सबके सामने तो इतनी चटुकारिता करना मुश्किल होता होगा ना. .. और दीजिए सारी अंदर की खबर और खूब करिए मक्खनबाजी भाई क्योंकि आप के इन कारनामों से तो भगवान कृष्ण जी भी सक्ते में आ गए हैं। क्योंकि वो भी सोच रहे हैं कि जिस मक्खन को वो इतना पसंद करते थे। कलयुग में इतना पसंद किया जाएगा .. और उनका मक्खन इतना बड़ा हथियार बन जाएगा। पूरे दिन लड़कियों को कोसते हो कि लड़कियां अपने हुस्न के दम पर इतनी आगे पहुंच रही हैं। कम से कम वो अपने दम पर तो कर रही हैं । आप की तरह नहीं की सब कुछ भूलकर आप मक्खन के पीछे लग गए हैं । पर मेरे दोस्त एक बात जान लो.. बॉस को जैसे ही नया मक्खनबाज मिला तो आप को ऐसी लात लगेगी की गधे की दुलल्ती को लोग भूल जाएंगे ....... प्रणव जी आशा करते की अगले बजट में मक्खन पर ध्यान दीजिएगा क्योंकि कई भाइयों कि पूरी की पूरी जिंदगी का आधार इसी मक्खन पर टिका है। दवाईंया सस्ती ना हो तो चलेगा पर इस ओर ध्यान देना
अनिल यादव
भगवान से आज फरियाद करता हूं कि मुझे अगले जन्म में लड़की बनाना... इसलिए नहीं कि मां बनकर किसी को अपनी ममता दूं या बहन बनकर अपने भाई से प्यार करुं । ये सब इसलिए कि मै भी तरक्की करना चाहता हूं। अब तो ऐसा लगने लगा है कि बिना लड़की बने कामयाबी की सीढ़ीयां शायद ही छूं पाऊ। इस फैसले पर मैं सुनी सुनाई बातों को सुनकर नहीं पहुंचा बल्कि इस फैसले पर पहुंचने के लिए मुझे करीब 20 साल लगे हैं । पहले अपने स्कूल में ये सब सहा पर स्कूल में टीचरों की लड़कियों पर मेहरबानी को समझ नहीं पाता था । क्योकि तब मै इतना सब समझदार नहीं था । पर कॉलेज तक जाते- जाते मैं सब समझने लगा था। कॉलेज तक जाते-जाते सारा माजरा समझ आने लगा था.. लेकिन जैसे ही कॉलेज से पास आउट होने के बाद मैने सोचा क्यों ना पत्रकार बनूं ये फैसला शायद मेरी जिंदगी का सबसे गलत फैसला था। मैने अपने खेल प्रेम को छोड़कर पत्रकारिता (so called ) चुनने का फैसला ले ही लिया। लेकिन पत्रकारिता चुनने के बाद तो भगवान से रोज फरियाद करता हूं कि जो कहते हैं की लड़कियों के लिए ये प्रोफेशन सेफ नहीं शायद वो आपको बहका रहे हैं । ऐसा नहीं है कि लड़कियां टेलेंटड नहीं है , पर आज जो लड़कियां इस लाइन में कदम रख रही हैं उनमे से ज्यादातर लड़किया शार्ट कर्ट अपनाने से परहेज नहीं करती या यू कंहे कि हालात ऐसे खड़े कर दिए जाते है । कि ना चाहते हुए भी अपनी हदे पार कर जाती हैं। मैने देखा कि छोटे-छोटे काम को लेकर लड़कियों कि इतनी तारीफ होती है । कि मानों शायद या तो वो बराक ओबामा का इंटरव्यू हिंदी में ले आईं हो या फिर ओसामा बिन लादेन का फोनो तालिबान की खबर पे दिलवा दिया हो। पर भाई मुझे नहीं पता की मुझे ये देख कर क्यों बुरा लगता है । भई वो तो लड़की है और मै एक लड़का तो भला मै कैसे बुरा मान सकता हूं। कुछ लड़कीयो की इस शार्ट कामयाबी को देखकर बेचारी शरीफ लड़कियां भी उस ओर बढ़ने लगी। पर ऐसा नहीं की सभी लड़कियों की ये दास्तान है । पर मै तो इंसान हूं बुराई जल्दी दिखती है । अच्छाई देखते वक्त तो मेरी आंखो पर पर्दा डल जाता है । ऐसी लड़कियां भी हैं जिन पर शायद ये बात बिल्कुल लागू नहीं होती। अब कम से कम ये तो समझ चुका हूं कि अगर कोई सगा-संबधी मुझसे इस लाइन में आने की सोच रहा होगा तो उसकी आखों पर से अंधविश्वास की पट्टी उठा दूंगा या फिर कहुंगा कि मेरी तरह फरियाद कर और इंतजार कर लड़की बनने का फिर आगे सोचना । या यूं कहे की मै आने वाली यूथ ब्रिगेड को अपने कम्पीटिशन में देखना ही नहीं चाहता। अब मै ये तो खुलासा नहीं कर सकता की ऐसा मैने क्या देख लिया की ये सब सोचने लगा । मै सिर्फ इतना ही कहुंगा की कोई ऐसे ही फैसलों पर नहीं पहुंचता ... हा एक बात और की फैसले बुरे नहीं होते बुरे तो नतीजे होते हैं।